Saturday, November 14, 2009

प्रेम

प्रेम -
रंग नहीं,
पानी नहीं,
उजाला नहीं,
अन्धेरा नहीं,
ताप नहीं,
शीतलता नहीं,
सुगन्ध है -
सिर्फ़ अनुभूति भर के लिए

प्रेम -
प्रकृति नहीं,
सृष्टि नहीं,
समुद्र नहीं,
सूर्य नहीं,
चन्द्र नहीं,
पवन नहीं,
सौन्दर्य है -
सिर्फ़ सुख के लिए

प्रेम -
साँस नहीं,
धड़कन नहीं,
चेतना नहीं,
स्पर्श नहीं,
स्पन्दन नहीं,
अभिव्यक्ति नहीं,
देह नहीं -
सिर्फ़ आत्मा है
परम तृप्ति और मोक्ष के लिए।

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