Sunday, December 13, 2009

बहूत खूबसूरत हो तुम

बहूत खूबसूरत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम !
कभी मैं जो कह दूं मोहब्बत है तुम से !
तो मुझको खुदारा गलत मत समझना !
के मेरी जरुरत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम !
है फ़ुलों की डाली, ये बाहें तुम्हारी !
है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी !
जो काटें हों सब अपने दामन में भर लूं !
सजाउं मैं इनसे राहें तुम्हारी !
नज़र से जमाने की खुद को बचाना !
किसी और से देखो दिल न लगाना !
के मेरी अमानत हो तुम !
बहुत खूबसूरत हो तुम !
है चेहरा तुम्हारा के दिन है सुनेहरा !
और उस पर ये काली घटाओं का पेहरा !
गुलाबों से नाजु़क मेहकता बदन है !
ये लब है तुम्हारा के खिलता चमन है !
बिखेरो जो जु़ल्फ़ें तो शरमाये बादल !
ये ताहिर भी देखे तो हो जाये पागल !
वो पाकीजा़ मुरत हो तुम !
बहुत खूबसूरत हो तुम !
मोहब्बत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम !
जो बन के कली मुस्कूराती है अक्सर !
शबे हिज्र मैं जो रुलाती है अक्सर !
जो लम्हों ही लम्हों मे दुनिया बदल दे !
जो शायर को दे जाये पेहलु ग़ज़ल की !
छुपाना जो चाहे छुपाई न जाये !
भुलाना जो चाहे भुलाई न जाये !
वो पेहली मोहब्बत हो तुम !
बहुत खूबसूरत हो तुम

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