Thursday, July 22, 2010

एक दिन मै तुम्हे छोर कर चले जायेगे



एक दिन मै तुम्हे छोर कर चले जायेगे ,
छोर दूंगा यह गली
छोर दूंगा आपने पदचाप
आपने आगन में ,
छोर दूंगा कबिता लिखना
मुक्त कर दूंगा सभी को
मुक्त हो जाउगा मै भी ,
फिर ढुढोगे मुझे
परन्तु ढुढ नहीं पाओगे
मै दूर बहुत दूर जा चूका हूँगा,
कैनवास पर रंग लगाना
फिर उसे नये-नये शक्ल देना
लाख प्रयत्न करोगे
फिर भी एक तस्वीर नहीं बना पावोगे ,
जावोगे मेरे घर और ढुढोगे मुझे
कभी इस कमरे में ,कभी उस कमरे में
कभी इस कोने में ,कभी उस कोने में
और अंत में
मेरे कबिताओ के पन्ने में मुझे ढुढोगे
परन्तु मुझे ढुढ नहीं पाओगे
ढुढ नहीं पाओगे, ढुढ नहीं पाओगे .

1 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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