Sunday, August 22, 2010

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो


ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
दर्द कैसा भी हो आँख नाम ना करो ,
रात काली सही कोई गम ना करो,
इक सितारा बनो जगमगाते रहो ,
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो .

बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी,
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी,
दिल की गहराई में गम छुपाते रहो,
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो.

अश्क अनमोल हैं खो ना देना कहीं,
इन की हर बूँद है मोतियों से हसीं,
इनको हर आँख से तुम चुराते रहो,
ज़िन्दगी में सदा मुसकुरात रहो .

फासले कम करो दिल मिलते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो.

3 comments:

شہروز said...

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
दर्द कैसा भी हो आँख नाम ना करो ,
रात काली सही कोई गम ना करो,
इक सितारा बनो जगमगाते रहो ,
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो .

क्या अंदाज़ है !! खूब !! निसंदेह कविता प्रेरक है!
रक्षाबंधन की ह्र्दयंगत शुभ कामनाएं !

समय हो तो अवश्य पढ़ें :
यानी जब तक जिएंगे यहीं रहेंगे !http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html

संगीता पुरी said...

फासले कम करो दिल मिलते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो.

बहुत खूब .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

Udan Tashtari said...

बढ़िया संदेश.

रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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