Sunday, May 20, 2012





कितना तकलीफ देता है 
किसी भरम का टूट जाना
कितनी टूट फूट होती है अन्दर 
कैसे शदीद तूफ़ान उठते हैं 
कैसी तबाहियां मचती हैं 
यही तक़दीर है मोहब्बत की 
जिन रास्तों पर हम ढूंढ़ने निकलते हैं
चाँदनी के फूल
वहां बिखरे हुए से मिलते हैं हमें 
वक़्त के पैरों तले दबे 
यादों में लिपटे कुछ एहसासात 


पहला चराग बुझ जाए 
तो अँधेरा बहुत गहरा होता है
फिर चाहे कोई रोशनी की 
कितनी ही पालकियां लेकर उतरे
अँधेरे कम नहीं होते