कितना तकलीफ देता है
किसी भरम का टूट जाना
कितनी टूट फूट होती है अन्दर
कैसे शदीद तूफ़ान उठते हैं
कैसी तबाहियां मचती हैं
यही तक़दीर है मोहब्बत की
जिन रास्तों पर हम ढूंढ़ने निकलते हैं
चाँदनी के फूल
वहां बिखरे हुए से मिलते हैं हमें
वक़्त के पैरों तले दबे
यादों में लिपटे कुछ एहसासात
पहला चराग बुझ जाए
तो अँधेरा बहुत गहरा होता है
फिर चाहे कोई रोशनी की
कितनी ही पालकियां लेकर उतरे
अँधेरे कम नहीं होते
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