Tuesday, December 22, 2009

सीने से चेहरा हटाने ना देता

सीने से चेहरा हटाने ना देता

आतीं कभी तुम अगर ज़िंदगी में
कभी एक पल को भी जाने ना देता

नींदें तुम्हारी मेरी बाज़ुओं में
सीने से सर ये हटाने ना देता

सर रख के सोती मेरे बाज़ुओं पर
कभी तुमको तकिया लगाने ना देता

खफा हो किसी से खुशामद मैं करता
किसी और को मैं मनाने ना देता

पढ़ता मुहब्बत आँखों में रात भर
कुछ भी लबों से बताने ना देता

वफ़ा बेवफ़ाई जो कुछ भी करतीं
किसी बात के भी मैं ताने ने देता

सुलगते हुए पल मेरे दिल में रखता
धड़कन तुम्हारी जलाने ना देता

तुम्हरी भी कसमे मैं पूरी करता
वादा तुम्हे इक निभाने ना देता.

1 comments:

संजय भास्‍कर said...

कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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