Wednesday, January 13, 2010

आओ देखें इक स्वप्न नया

आओ देखें इक स्वप्न नया,
नई रचना हों, नई उम्मीदें,
छोटी-छोटी सी ख्वाहिशें हो,
हो अपनों की खुशियां जिनमें।





पल-पल के सपने तैर रहे,
छोटी-छोटी आशाओं में,
मन मचल रहा छूने को यूं,
हो सीप में,... कोई मोती जैसे।






ठण्डी में सौंधी-सी धूप खिले,
हर तरफ हों नन्हें फूल खिलें,
तितली में, हों कई रंग भरे,
ख्वाबों में भी लगे पंख नये।

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