Thursday, January 14, 2010

कुछ कहते हुए....ख़्वाब

कुछ कहते हुए....ख़्वाब,
कुछ सुनते हुए....ख़्वाब,
चलो इन ख़्वाबों को,
आज अपना बनालूं,



कहदूं इन्हें दिल के,
वो सारे जज़्बात,
और आंखों में अपनी,
मैं इनको सजा लूं,



जब खोल के देखूं,
मूंदी हुई पलकें,
और सामने बैठे हो,
कुछ कीमती सपनें,


कह दूं उन्हें भी,
हैं ये भी कुछ अपने,
लो संग इन्हें भी,
दर्पण में समा लो,



कुछ कहते हुए......ख़्वाब,
कुछ सुनते हुए......ख़्वाब,
चलो इन ख्वाबों को,
आज अपना बना लूं।

1 comments:

sandip.kumar said...

Sandip.Kumar


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