Monday, April 19, 2010

अक्सर सुनता आया हूँ,वक़्त की कमी है

अक्सर सुनता आया हूँ,वक़्त की कमी है |
मेरी आँखों में बस, तेरी यादों की नमी है ||

एक वक़्त था जब,हम लम्हा लम्हा जिये थे |
इश्क़ की मधुरा ,तुम्हारे साथ साथ पिये थे ||

सच कहते है सब,के वक़्त रेत का टीला है |
समझ नही पाए खेल,वक़्त ने जो खेला है ||

वक़्त ही तो था , तुम सावन से आए थे |
वक़्त ने ही बताया , तुम बस साये थे ||

वक़्त ने ही हमारे, इश्क़ का बिगुल बजाया |
वक़्त ने ही हमारे , अरमानो को सजाया ||

ढूँढ रहा हूँ आज, वो वक़्त कहा खो गया है |
मुझे ख्वाब से जगाया ,और खुद सो गया है ||

यारा इश्क़ के साथ , मेरा सब कुछ चला गया है |
अब तो एक इंतज़ार, और वक़्त ही बाकी रह गया है ||

0 comments:

Post a Comment