Friday, April 23, 2010

तुझे पता है

तुझे पता है मै अक्सर तुझे आपने अन्दर मह्सुश करता हु,
सारा दिन थक कर जब घर आता हु
जल्दी से कॉफ़ी मेरे लिये तुम बनती
और साथ बैठ कर पीते फिर
तुम मेरे सर के बालो से खेलने लगती हो
और मुझे सुकून मिलता
कभी अपने आचल में मुझे छुपा लेती
तो कभी मेरे चेहरे को अपने सीने से लगा कर
हमारी सारी थकन को खुद में समेत लेती
और मै तुम से कभी दूर जाये
यह एहसास खुद में बसा लेता हु.........
आखे खुली तो खुद को अकेला पाया
यह अक्सर मेरे साथ होता है......
यह जानते हुए की तुम मेरे पहुच से कोसो दूर हो
फिर भी तुम्हे अपने पास पता हु
तुम्हे हमेसा हमेसा के लिये अपने अन्दर समां चूका हु
तमको पता नहीं होगा ?
मेरे अन्दर तुम आत्मा की तरह बस चुकी हो
जो कभी मरता नहीं है
मरता नहीं है

0 comments:

Post a Comment