Thursday, May 13, 2010

तुम्हारी यादे

सुबह होती है तुम्हारी यादे ठंडी हवा की तरह मेरे शारीर में बस जाती है
मेरे ज़िंदगी में तुम्हारी क्या अहमियत है यह तुम नहीं जान सकती
मुझे नए जिंदिगी देने वाली तुम हो
मेरे हर साँस में तुम हो
आज मुझे कैसा लगता है और कैसे रहता हु यह तुम नहीं जान सकती
कुछ भी अच्छा नहीं लगता है
एक जिंदा लाश की तरह हो गया हु
जीने के लिए खा लेता हु
दुसरो को खुश रखने के लिया
खुश रहना परता है
किसी काम में मन नहीं लगता
पर मन लगाना परता है।
कहा हो ....अब तो जावो
वरना इस शारीर से जान भी जा सकता है.......

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

मन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता

संजय भास्‍कर said...

काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

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