Wednesday, July 21, 2010



तुम्हे मैं भुला नहीं सकता .
मन में बसी तुम्हारी बातों की
खुशबू मैं मिटा नहीं सकता .

सुख दुख में
साथ देते
तुम संग बीते क्षण वो सारे
विरह वेदना में तड़प कर
ये मुहोब्बत छुड़ा नहीं सकती.

दुःख किये होंगे
मैंने भी बहुत..
वेदना से जल चक्षु
तुम्हारे भी ..
भरे होंगे बहुत.
पर तुमसे मिले
अंतर्नाद को भी
मैं दबा नहीं सकती.

मेरी हर सोच को तुमने
विकृत नजरिया दे डाला
मन की पावनता को
यामिनी रंग में रंग डाला .

सदैव तुमने मुझे
परीक्षा की नजरों से देखा
गुणों की कसौटी पर
सदा परखते हुए देखा.

तुम्हारी परीक्षक नज़र में
गुण भी अवगुण बनते चले गये
सौन्दर्य के रूपक भी
कुरूपता के अर्थो में
ढलते चले गये .

नारी मनोविज्ञान
क्या तुमने जाना नहीं था ?
कि परीक्षक नहीं
प्रेम मयी ह्रदय ही
मेरे मन ने चाहा था.

कभी प्रेम की आँखों के..
प्रेमाभाव दिखाओ प्रिये
आसक्ति के फूल
बरसाओ प्रिये ...

मेरी सोचो को
गंगा की पवित्रता
सी नजर से
नहलाओ प्रिये ..

फिर परीक्षण नहीं..
समर्पण भाव होगा,
अवगुणों का नहीं..
गुणों का भी
प्रादुर्भाव होगा.

तुमसे लागी जो मन की लगन
वो मैं मिटा नहीं सकता .
ह्रदय से एक आह निकलती है
जिसे वर्णों और छन्दो में
मैं बता नहीं सकता .

बस एक बात कहता हूँ
कि मेरे ह्रदय में..
तुम जैसा ना आया कभी
और तुम जा सकते नहीं .

मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकता .

1 comments:

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

Post a Comment