Friday, September 17, 2010

आ भी जाओ अब

इस शहर को तुम्हारा तुम्हारा पाँव छूटे ही
तुम्हारा होने का एहसास होने लगता है
की तुम दौड़ कर चले आओं मेरे पास
फिर कभी नहीं जाने के लिए
तुम्हारे इंतजार में मै अब भी बैठा हु
कब शाम हुई कब रात
कुछ पता नहीं
फिर वही सुबह
आखो खुलती है तो तुम्हारी तस्वीर
नजर आती है
फिर मेरे हर पल में तुम बस जाती हो
न जाने कितने मैसम बीत गए
न जाने यह जीवन रहेगी या नहीं
आ भी जाओ अब
फिर कभी दूर नहीं जाने के लिए

0 comments:

Post a Comment