Friday, September 17, 2010

तुम्हारी परछाई




मै चलता तो वह भी चल देता
मै रुकता तो वह भी रुक जाता
मै बैठता तो वह भी बैठ जाता
मै उठता तो वह भी उठ जाता
वह मेरा नक़ल कर रहा था और मै
उसके साथ खेल रहा था
मै लेट जाता तो वह भी लेट जाता
जब उसके साथ खेलते खेलते
थक गए
फिर उठ कर बैठ गए
और धीरे से उसके पास
जा कर पूछे की "कौन हो तुम
मेरे पीछे पीछे क्यों चल रहे
मेरा नक़ल क्यों कर रहे हो"
तभी "तुम्हारी" आवाज आई
मै हु तुम्हारा परछाई...........
हा सच में तुम ही तो थी
मेरी परछाई भी तो तुम ही हो
जो हमेशा मेरे साथ रहता है
मुझसे कभी दूर नहीं जाता
मुझे सहारा देता है
मुझे जीवन जीने का रास्ता दिखता है
मुझे हारने नहीं देता
हर पल मेरे साथ रहता है
मुझसे कभी दूर नहीं जाता......

1 comments:

hemantsarkar said...

आप जो लिखती है इसका कोई जबाब नहीं खास कर मेरी परछाई में जो शब्द है लगता है दिल से निकला हो.बहुत खूब

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